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किया॒त्या यत्स॒मया॒ भवा॑ति॒ या व्यू॒षुर्याश्च॑ नू॒नं व्यु॒च्छान्। अनु॒ पूर्वा॑: कृपते वावशा॒ना प्र॒दीध्या॑ना॒ जोष॑म॒न्याभि॑रेति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kiyāty ā yat samayā bhavāti yā vyūṣur yāś ca nūnaṁ vyucchān | anu pūrvāḥ kṛpate vāvaśānā pradīdhyānā joṣam anyābhir eti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किय॑ति। आ। यत्। स॒मया॑। भवा॑ति। याः। वि॒ऽऊ॒षुः। याः। च॒। नू॒नम्। वि॒ऽउ॒च्छान्। अनु॑। पूर्वाः॑। कृ॒प॒ते॒। वा॒व॒शा॒ना। प्र॒ऽदीध्या॑ना। जोष॑म्। अ॒न्याभिः॑। ए॒ति॒ ॥ १.११३.१०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! (यत्) जैसे (याः) जो (पूर्वाः) प्रथम गत हुईं प्रभात वेला सब पदार्थों को (कियति) कितने (समया) समय (व्यूषुः) प्रकाश करती रहीं (याः, च) और जो (व्युच्छान्) स्थिर पदार्थों की (वावशाना) कामना सी करती (प्रदीध्याना) और प्रकाश करती हुई (कृपते) अनुग्रह करती (नूनम्) निश्चय से (आ, भवाति) अच्छे प्रकार होती अर्थात् प्रकाश करती उसके तुल्य यह दूसरी विद्यावती विदुषी (अन्याभिः) और स्त्रियों के साथ (जोषमन्वेति) प्रीति को अनुकूलता से प्राप्त होती है, वैसे तू मुझ पति के साथ सदा वर्त्ता कर ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है।  (प्रश्न-) कितने समय तक उषःकाल होता है ? (उत्तर-) सूर्य्योदय से पूर्व पाँच घड़ी उषःकाल होता है। (प्रश्न-) कौन स्त्री सुख को प्राप्त होती है ? (उत्तर-) जो अन्य विदुषी स्त्रियों और अपने पतियों के साथ सदा अनुकूल रहती हैं, और वे स्त्री प्रशंसा को भी प्राप्त होती हैं, जो कृपालु होती हैं, वे स्त्री पतियों को प्रसन्न करती हैं, जो पतियों के अनुकूल वर्त्तती हैं, वे सदा सुखी रहती हैं ॥ १० ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे स्त्रि यद् यथा याः पूर्वा उषसस्ताः सर्वान् पदार्थान् कियति समया व्यूषुर्याश्च व्युच्छान् वावशाना प्रदीध्याना सती कृपते नूनमाभवाति तद्वदन्याभिः सह जोषमन्वेति तथा मया पत्या सह सदा वर्त्तस्व ॥ १० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कियति) अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (आ) (यत्) तथा (समया) काले (भवाति) भवेत् (याः) उषसः (व्यूषुः) (याः) (च) (नूनम्) निश्चितम् (व्युच्छान्) व्युच्छन्ति तान् (अनु) आनुकूल्ये (पूर्वाः) अतीताः (कृपते) समर्थयतु। व्यत्येनात्र शः। (वावशाना) भृशं कामयमानेव (प्रदीध्याना) प्रदीप्यमाना (जोषम्) प्रीतिम् (अन्याभिः) स्त्रीभिः (एति) प्राप्नोति ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। कियत्समयोषा भवतीति प्रश्नः। सूर्य्योदयात्प्राग्यावान् पञ्चघटिकासमय इत्युत्तरम्। का स्त्रियः सुखमाप्नुवन्तीति, या अन्याभिर्विदुषीभिः पतिभिश्च सह सततं सङ्गच्छेयुस्ताः प्रशंसनीयाश्च स्युः। याः करुणां विदधति ताः पतीन् प्रीणयन्ति। याः पत्यनुकूला वर्त्तन्ते ताः सदाऽऽनन्दिता भवन्ति ॥ १० ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे.
टिप्पणी: प्र. उषःकाल किती वेळ असतो?उ. सूर्योदयापूर्वी पाच घटका उषःकाल असतो. प्र. कोणत्या स्त्रिया सुखी असतात?उ. ज्या इतर विदुषी स्त्रियांबरोबर व आपल्या पतींबरोबर सदैव अनुकूल असतात त्याच प्रशंसेस पात्र असतात. ज्या कृपामयी असतात त्या पतींना प्रसन्न करतात. ज्या पतीच्या अनुकूल वागतात त्या सदैव सुखी राहतात. ॥ १० ॥